मंगलवार 23 दिसंबर 2025 - 12:52
माहे रजब, शाबान और रमज़ान; रूहानी खेती का मुकम्मल नक़्शा हैं।मौलाना सैयद ज़ीशान नजफ़ी

हौज़ा / अहले मआरिफ़त और उलेमा ने इन तीन मुबारक महीनों रजब, शाबान और रमज़ान को रूहानी तरबियत का एक मुसलसल सफ़र क़रार दिया है। ये महज़ महीने नहीं हैं, बल्कि इंसान की अंदरूनी इस्लाह और तज़किया ए नफ़्स का एक मुकम्मल निज़ाम हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,अहले मआरिफ़त और उलेमा ने इन तीन मुबारक महीनों रजब, शाबान और रमज़ान को रूहानी तरबियत का एक मुसलसल सफ़र क़रार दिया है। ये महज़ महीने नहीं हैं, बल्कि इंसान की अंदरूनी इस्लाह और तज़किया ए नफ़्स का एक मुकम्मल निज़ाम हैं।

अहले मआरिफ़त और उलमा ने इन तीन बरकत वाले महीनों  रजब, शाबान और रमज़ान को रूहानी तरबियत का एक लगातार सफ़र क़रार दिया है। ये सिर्फ़ महीने नहीं हैं, बल्कि इंसान की बातिनी इस्लाह का एक मुकम्मल निज़ाम हैं।

रजब वह महीना है जिसमें दिल की ज़मीन तैयार की जाती है। यह अल्लाह की तरफ़ तवज्जोह, तौबा, इस्तिग़फ़ार और ख़ुद-एहतेसाबी का वक़्त है।गोया रजब में ईमान और इबादत का बीज बोया जाता है।शाबान वह महीना है जिसमें इस बीज को सींचा जाता है।

यह महीना निगहदाश्त और परवरिश का है।और फिर आता है रमज़ानुल मुबारक जहाँ वही बीज दरख़्त बन जाता है,जहाँ इबादत ज़ौक़ बन जाती है,जहाँ तक़वा एक कैफ़ियत की शक्ल इख़्तियार कर लेता है।और जहाँ इंसान अपनी रूहानी फ़सल काटता है।

अहले-बैत (अ.स.) की रिवायात गवाह हैं कि जो शख़्स रमज़ान में बुलंदी चाहता है, वह उसकी तैयारी रजब ही से करता है। बिना तैयारी के रमज़ान आ जाए तो अक्सर इंसान उसकी अज़मत को पहचान तो लेता है, मगर उसका हक़ अदा नहीं कर पाता।

आइए!इस माह को सिर्फ़ देखने तक महदूद न रखें,बल्कि इसे अपनी ज़िंदगी का नक़्शा बना लें।रजब से नियत बदलें,शाबान में आदत संवारेंऔर रमज़ान में अल्लाह के क़ुर्ब की फ़सल हासिल करें।अभी से तैयारी शुरू करें,क्योंकि रूहानी फ़सल हमेशा पहले से बोई जाती है।

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